वक्फ संशोधन विधेयक 2025 : भ्रांति, डर और तुष्टिकरण से इतर सच्चाई




वक्फ (संशोधन) विधेयक की फाइनल परीक्षा में मोदी सरकार अव्वल नंबरों से पास हो गई। बिल कानून की शक्ल ले चुका है। राष्ट्रपति की मंजूरी मिल चुकी है, अब ‘वक्फ संशोधन विधेयक, 2025’ नए क़ानून के तौर पर उम्मीद (यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट एंपॉवरमेंट एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट) के नाम से जाना जाएगा। न सिर्फ मोदी सरकार बल्कि मुस्लिम समाज के भी कई लोग इसे ऐतिहासिक बदलाव मान रहे हैं तो विपक्ष अब भी इसे लेकर लकीर पीट रहा है। ऐसे में वक्फ संशोधन बिल को लेकर कही जा रहीं ‘अपुष्ट’ बातों की हकीकत जानना जरूरी है। सवाल यह भी है कि कहीं इस विरोध की आड़ में भी एक बार फिर ट्रिपल तलाक, धारा 370 और CAA प्रोटेस्ट की तर्ज पर पुरानी बोतल में नई शराब भरने की नाकामयब कोशिश तो नहीं की जा रही? जिसका प्रयोग हमेशा डर, भ्रांति और तुष्टिकरण की सियासत के लिए किया जाता रहा है। इसे समझने के लिए यह जानना भी जरूरी है कि सरकार को य विधेयक लाने की जरूरत क्यों पड़ी?

गड़बड़ियों पर डाले गए पर्दे में हुए ‘छेद’

वैसे तो वक्फ की संपत्तियों से जुड़े तमाम विवाद हैं लेकिन कानूनी तौर 2013 में लिए गए एक सरकारी फैसले ने इस विवाद को गहरा दिया। दरसअसल 2013 में वक्फ कानून में संशोधन किया गया। इन संशोधन के बाद वक्फ कानून अपने आप में तमाम नियम, कायदे-कानून को भी ‘सुपरसीड’ करते हुए फैसले लेने की ताकत हासिल कर गया। दिल्ली में लुटियन्स जोन की 123 वीवीआईपी संपत्तियों को वक्फ को दिए जाने के मामले ने न सिर्फ मौजूदा सरकार का बल्कि जनता का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा। दरअसल मात्र 5.30 घंटे की चर्चा कर लाया गया 2013 का संशोधन वक्फ की गड़बड़ियों पर पर्दा डालने की फौरी कोशिश के अलावा कुछ नहीं था। इसकी पुष्टि इन आंकड़ों से होती है- 1913 से 2013 तक वक्फ बोर्ड की कुल भूमि 18 लाख एकड़ थी, लेकिन इस संशोधन के बाद 2013 से 2025 तक और नई 21 लाख एकड़ भूमि बढ़ गई। गड़बड़ी का आलम यह है कि लीज पर दी गई संपत्तियां 20 हजार थीं, लेकिन रिकॉर्ड के हिसाब से 2025 में ये संपत्तियां शून्य हो गईं। कुल मिलाकर वक्फ की गड़बड़ियों पर 2013 में क़ानून की शक्ल मे डाले गए पर्दे में इतने छेद हो गए कि तमाम गड़बड़ियां छिपाए न छिप सकीं।

जब पकड़ी गई ‘चोरी’ और सीनाजोरी

इसके अलावा तमाम राज्यों में भी वक्फ संपत्ति के दावों को लेकर विवाद देखे जाते रहे हैं। इन विवादों के चलते कई जगहों पर सांप्रदायिक तनाव की स्थिति भी बनती रही है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो सितंबर 2024 तक 25 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के वक्फ बोर्डों में कुल 5973 सरकारी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया। इनमें तमिलनाडु के थिरुचेंथुरई गांव के किस्से ने तो देश में वक्फ में बैठे कुछ लोगों को ऐसे ‘चोर’ के तौर पर बेनकाब किया जो ‘चोरी तो चोरी, सीनाजोरी’ भी करते दिखे। वक्फ के इस गोरखधंधे का पता तब चला जब एक किसान राजगोपाल अपनी बेटी की शादी के लिए अपनी जमीन का कुछ हिस्सा बेचने निकले। तब उनसे कहा गया कि वक्फ से एनओसी लेकर आओ। किसान के पैरों तले जमीन खिसक गई जब उसे पता चला कि वर्षों से जिस जमीन को वह अपने पसीने से सींच कर उम्मीदों की फसल उगा रहा था उस पर किसी और का कब्जा है। इतना ही नहीं वक्फ बोर्ड ने पूरे गांव पर अपना दावा ठोंक रखा था।

गांव के गांव ले लिए जद में

वक्फ के बड़े खेल में बिहार के गोविंदपुर गांव का भी मामला है। बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अगस्त 2024 में पूरे गांव पर अपना दावा ठोंक दिया। इस ज्यादती के चलते कितने परिवार प्रभावित हुए। कोई अपने सिर से छत गंवा बैठा किसी के पास जोतने के लिए खेत न बचा। यह मामला अभी भी पटना उच्च न्यायालय में चल रहा है। केरल एर्नाकुलम जिले के करीब 600 ईसाई परिवारों की पुश्तैनी जमीन पर वक्फ बोर्ड ने कब्जा कर लिया। बक्फ बोर्ड के इस ‘कारनामे’ का विरोध सितंबर 2024 से हो रहा है। इस मामले को लेकर संयुक्त संसदीय समिति में अपील भी की गई है। कर्नाटक में तो गजब ही हो गया। 2024 में वक्फ बोर्ड ने विजयपुरा में 15,000 एकड़ जमीन को वक्फ जमीन के रूप में घोषित कर दिया। इसके बाद किसानों ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के आगरा, लखनऊ, प्रयागराज जैसे कई शहरों में वक्फ बोर्ड में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर शिकायतें समय-समय पर होती रही हैं।

‘धार्मिक कार्यों में गैर-इस्लामिक सदस्य नहीं’

वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करने वाले इस बदलाव को मुस्लिमों के धार्मिक क्रियाकलापों और उनके द्वारा दान की गई संपत्तियों में दखल की बात कह कर डरा रहे हैं। जबकि लोकसभा में चर्चा के दौरान देश के गृहमंत्री अमित शाह खुद इस बात को साफ कर चुके हैं कि मुस्लिम भाइयों के धार्मिक क्रियाकलाप और उनके बनाए हुए दान से जुड़े ट्रस्ट यानि वक्फ में सरकार कोई दखल नहीं करना चाहती। सरकार की तरफ से साफ किया गया है कि मुतवली, वाकिफ, वक्फ सब मुस्लिम ही होंगे, लेकिन यह जरूर देखा जाएगा कि वक्फ की संपत्ति का रखरखाव ठीक से हो रहा है या नहीं। बिल में यह भी स्पष्ट है कि वक्फ बोर्ड में धार्मिक दान से जुड़े कार्यों में किसी गैर-इस्लामिक सदस्य को जगह नहीं मिलेगी।

धार्मिक स्वतंत्रता के नाम गड़बड़ी जायज?

इस विधेयक में इस बात का जरूर ध्यान रखा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम किसी भी तरह की गड़बड़ी न होने पाए। इसलिए आगे से चैरिटी कमिश्नर किसी भी धर्म का व्यक्ति बन सकता है। क्योंकि चैरिटी कमिश्नर का काम धार्मिक नहीं बल्कि प्रशासनिक है, जिसकी जिम्मेदारी होगी कि बोर्ड का संचालन चैरिटी कानून के मुताबिक हो। राय-मशविरा न करने के विपक्ष के आरोप पर सरकार की तरफ से स्पष्ट किया गया है कि इस विधेयक को अमलीजामा पहनाने के लिए संयुक्त समितियां बनाई गईं, 38 बैठकें हुईं, 113 घंटे चर्चा हुई और 284 हितधारक बनाए गए। इन सबसे देशभर से लगभग एक करोड़ ऑनलाइन सुझाव आए जिनकी मीमांसा कर ये कानून बनाया गया। कुल मिलाकर सरकार इसे विपक्ष के माइनॉरिटी समुदाय को डरा कर अपनी वोट बैंक खड़ी करने की एक कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं मानती। क्योंकि सरकार ही नहीं बल्कि देश के तमाम हिस्सों से मुस्लिम समुदाय की तरफ से आ रही प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि वक्फ बोर्ड का काम वक्फ की संपत्तियां बेच खाने वालों को पकड़ कर बाहर निकालने का होना चाहिए न कि अनियमितताओं पर पर्दे डालने का।

न खाता न बही’ वाला फॉर्मूला खत्म

वक्फ के विरोध के नाम पर चलाई जा रही डर की दुकानों से बांटे जा रहे भ्रांति के पर्चों पर लिखी झूठी कहानियों की सच्चाई इस बात से उजागर होती है कि नए काननू में न सिर्फ मुस्लिम महिलाओं और कानूनी उत्तराधिकारियों के अधिकार सुरक्षित करना सुनिश्चित किया जा रहा है बल्कि मुस्लिम बच्चियों के बेहतर भविष्य का भी खयाल रखने कि मंशा दिखती है। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक विधेयक में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और वित्तीय स्वतंत्रता कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर मुस्लिम महिलाओं, विशेष रूप से विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार करने का भी प्रयास किया गया है। इसके अलावा ‘न खाता न बही’ वाला फॉर्मूला भी नहीं चल पाएगा। अब बाकायदा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए वक्फ रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण होगा। पारिवारिक विवादों और उत्तराधिकार अधिकारों के लिए कानूनी सहायता केंद्रों की स्थापना होगी।

महिलाओं के सशक्त बनने से किसको डर?

वक्फ विधेयक का विरोध करने वालों से पूछा जाना चाहिए कि उन्हें महिलाओं को सशक्त होते देख डर लग रहा है? क्योंकि नए कानून के अमल में आने से वक्फ में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, परिणामस्वरूप पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और वक्फ संसाधनों का दुरुपयोग रुकेगा। अब वक्फ सिर्फ जमीनों को खुर्दबुर्द करने व धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर असल जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर मनमानी करने वालों का ‘अड्डा’ मात्र बन कर नहीं रह पाएगा बल्कि इसको गरीबों के उत्थान, महिलाओं के कल्याण व सांप्रदायिक सद्भावना की दिशा में काम करने वाले एक इंस्टीट्यूशन के तौर पर पहचान मिल सकती है। नए कानून के बाद मुस्लिम लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति का इंतजाम होगा। स्वास्थ्य सेवा और मातृत्व कल्याण के लिए कदम उठाए जाएंगे। महिला उद्यमियों के लिए कौशल विकास और माइक्रोफाइनेंस सहायता देने की भी सरकार की मंशा है। मुस्लिम लड़कियां भी फैशन डिजाइन, स्वास्थ्य सेवा और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण हासिल कर सकेंगी इतना ही नहीं विधवाओं के लिए पेंशन जैसी बड़ी योजना भी है।

भ्रांति और डर की दुकानों का शटर डाउन

वक्फ संशोधन विधेयक के जरिए सरकार अब वक्फ में ‘न खाता, न बही’ की पुरानी कार्यशैली पर ताला लगाने जा रही है। अब पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए इसके तमाम रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण होगा। एक केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल वक्फ संपत्तियों की पहचान करेगा, जिससे बेहतर निगरानी और प्रबंधन सुनिश्चित होगा। ऑडिटिंग और अकाउंटिंग से वित्तीय कुप्रबंधन पर अंकुश लगाने की तैयारी है यानी कि यह सुनिश्चित होगा कि फंड का इस्तेमाल केवल कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए किया जाए। अल्‍पसंख्‍यक कार्य मंत्रालय के मुताबिक वक्फ भूमि के दुरुपयोग और अवैध कब्जे को रोकने से वक्फ बोर्डों के राजस्व में वृद्धि होगी, जिससे उन्हें कल्याणकारी कार्यक्रमों का विस्तार करने में मदद मिलेगी। बजट का बंदरबांट रोकने के लिए स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आवास और आजीविका सहायता के लिए फंड आवंटित किया जाएगा, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का भला होगा। वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 में पिछड़े वर्गों और मुस्लिम समुदायों के अन्य संप्रदायों का भी खास ध्यान रखा गया है। विधेयक में राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के वक्फ बोर्डों में बोहरा और अघाखानी समुदायों से एक-एक सदस्य को शामिल करने का प्रावधान है। साथ ही, बोर्ड में शिया और सुन्नी सदस्यों के अलावा पिछड़े वर्गों से संबंधित मुसलमानों का प्रतिनिधित्व होगा। इतना ही नगर पालिकाओं या पंचायतों से दो या अधिक निर्वाचित सदस्यों को शामिल कर, वक्फ मामलों में स्थानीय शासन को मजबूत किया जाएगा। पारदर्शिता और अन्य वर्ग की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से बोर्ड में पदेन सदस्यों को छोड़कर दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी शामिल किया जाएगा।

-(वरिष्ठ पत्रकार अमित शर्मा को मीडिया जगत में लगभग डेढ़ दशक का अनुभव है)

वक्फ संशोधन विधेयक 2025 : भ्रांति, डर और तुष्टिकरण से इतर सच्चाई वक्फ संशोधन विधेयक 2025 : भ्रांति, डर और तुष्टिकरण से इतर सच्चाई Reviewed by SBR on April 08, 2025 Rating: 5

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